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Harishankar Prasai ki Vyangya Rachnayen

1,450.00

Author : Raman Khatik
ISBN : 978-93-90423-85-9
Edition : 1st
Year : 2023
Pages : 344
Size : 14.5×21.5 Cm
Publisher : Global Academic Publishers & Distributors
Price : INR 1500/-
Subject : Vyangya Rachnayen

Description

हिन्दी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई किसी भी परिचय के मोहताज नहीं हैं– हिन्दी साहित्य में व्यंग्य वि/ाा के लिए, हर वर्ग के पाठक की चेतना में अगर किसी का नाम पहले–पहल आता है, तो वो परसाई ही हैं । व्यंग्य वि/ाा को अपने सुदृढ़ और आ/ाुनिक रूप में खड़ा करने में परसाई के योगदान को आलोचकों ने एक सिरे से स्वीकार किया है ।
एक आ/ाुनिक वि/ाा के रूप में व्यंग्य की ख्याति 20वीं सदी में हुई । पाश्चात्य चिंतक जॉनथन स्विफ्ट व्यंग्य के विषय में कहते थे कि “व्यंग्य एक ऐसा दर्पण है जिसमें देखने वाले को अपने अतिरिक्त सभी का चेहरा दिखता है ।” इस वि/ाा का मुख्य उद्देश्य है, व्यक्ति और उसके सामाजिक संदर्भों में दिखने वाली किसी भी विसंगति पर कुठाराघात करना, भले ही यह संदर्भ, व्यक्ति और समाज के संबं/ा का हो सकता है, वर्ग और जाति के समीकरण का हो सकता है या विभिन्न
विचार/ााराओं के टकराव का ।
एक व्यंग्यकार, व्यक्ति–जीवन की विडंबनाओं का एक ऐसा रेखाचित्र खींचता है जिसे पढ़कर एक चेतन पाठक अपने आप से भी सवाल उठाने पर विवश हो जाता हैं व्यंग्य के विषय में स्वयं परसाई कहा करते थे “व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है, जीवन की आलोचना करता है, विसंगतियों, अत्याचारों, मिथ्याचारों और पाखंडों का पर्दाफाश करता है ।”
अपने प्रसिद्ध व्यंग्य निबं/ा संग्रह ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए सन 1982 में साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त करने वाले परसाई हिन्दी के एकमात्र व्यंग्यकार हैं । परसाई की रचनाओं के अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में हो चुके हैं ।
एक व्यंग्यकार की सफलता का आकलन इसी तथ्य से किया जा सकता है कि उसके व्यंग्यों की सामाजिक सोद्देश्यता क्या है ? और उसके सरोकार क्या हैं ? लेखक की सामाजिक प्रतिबद्धता के विषय में परसाई के विचार थे । “लेखक समाज का एक अंग है और उस समाज पर जो गुजरती है, उसमें सहभागी है । समाज के उत्थान और पतन, संघर्ष, सुख–दुख, आशा–निराशा, अन्याय–उत्पीड़न आदि में वह दूसरों का सहभाक्ता है ।”
लेखक की समाज में फैली विसंगतियों को पहचानने की पीड़ा, उसकी व्यक्तिगत पीड़ा है जिसका समा/ाान वह समूह में और समूह के लिए ढूंढना चाहता है । इसीलिए अज्ञेय जिस व्यक्ति–स्वातंर्त्य की बात अपने विचारों में करते हैं, परसाई उसका सम्मान करते हुए भी व्यक्ति और व्यक्ति–निर्मित कला की एक सामाजिक सोद्देश्यता के पक्ष/ार हैं । परसाई कहते हैं– प्रसिद्ध विद्वान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कहा करते थे “व्यंग्य वह है जहां कहने वाला तो अ/ारोष्ठों में हंस रहा हो और पर सुनने वाला तिलमिला रहा हो ।”

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