Description
15वीं सदी के मिथिला की साहित्य जगत के बुद्धिमान कवि थे पंडित गुणानंद झा, जिन्हें हम गोनू झा के नाम से भी जानते हैं । गोनू झा की बुद्धिमता की ढेरों कहानियां बच्चों को ना केवल हैरान करेगी बल्कि उन्हें हंसी से लोटपोट भी करेगी । मिथिलांचल मखाना में गोनू झा के किस्से उसी तरह प्रचलित हैं जैसे मछली और मखाना! कहते हैं कि बिना मछली और मखाना के मिथिलांचल में कोई शुभ कार्य नहीं होता और बिना गोनू झा के किस्सों के कोई जलसा सम्पन्न नहीं होता । मिथिलांचल में पाँच सौ साल पहले अज्ञान भी था और अभाव भी । चोरी, ठगी आदि के किस्सों से इस बात का अन्दाज सहज ही लग जाता है । सा/ाु– महात्माओं के किस्से भी गोनू झा के किस्सों के साथ– साथ चलते हैं । गोनू झा के प्रचलित किस्सों से पता चलता है कि मिथिलांचल के तत्कालीन समाज में अन्/ाविश्वासों का व्यापक प्रभाव था । जादू, टोना–टोटका आदि के सहारे लोग अपनी शक्ति और सामर्थ्य बढ़ाने का प्रयास करते थे । कुछ शो/ाकर्ताओं का मानना है कि गोनू झा के जीवनकाल की घटनाओं के साथ ही विभिन्न काल खंडों में गोनू झा के किस्सों में नए किस्से भी जुड़ते गए हैं जिसके कारण पाँच शताब्दियों के बाद भी गोनू झा के किस्से नयापन लिए हमारे सामने आ रहे हैं । हंसना हंसाना हमारे जनमानस के स्वभाव का हिस्सा है । इसलिए इतिहास में हमें ऐसे हंसोड़ नायक ़मिलते हैं जो हंसने–हंसाने के अलावा जीवन से जुड़ी सीख भी देते रहे हैं । एक तरफ तेनालीराम हैं, तो दूसरी तरफ बीरबल । पूर्वी में गोनू झा और गोपाल भांड रहे हैं । इनके जीवन के बारे में जानकारी और इनके कुछ किस्से इस किताब में दिए गए हैं । ये किस्से रोचक हैं । मनोरंजक हैं और ज्ञानवर्द्/ाक भी । लगन, मेहनत, /ौर्य, वाक्पटुता अवसर की समझ जैसे कई गुण इन किस्सों में पिरोए गए हैं, जो अनजाने ही पाठकों के मन में घर कर जाते हैं ।
जनश्रुति के अनुसार गुणानंद झा उर्फ गोनू झा का जन्म दरभंगा जिला (बिहार–मिथिलांचल) के अन्तर्गत ‘भरौरा’ गाँव में लगभग 500 सौ वर्ष पूर्व एक गरीब किसान परिवार में ऐसे समय हुआ था जब /ार्मां/ाता और रूढ़िवादिता का बोलबाला था । बड़े जमींदार राजा कहलाते थे । दरबारियों के हाथ में शासन से प्रजा त्रस्त थी । चापलूस दरबारियों के चंगुल से प्रजा को बचाने में जहाँ गोनू झा का महत्त्वपूर्ण योगदान था, वहीं उन्होंने सा/ाुओं के वेश में ढोंगियों से भी लोहा लिया । त्रस्त जन गोनू झा को ही अपनी समस्याओं से अवगत कराते और गोनू झा बड़ी से बड़ी समस्या को चुनौतीपूर्वक स्वीकार कर सहजता से समा/ाान निकाल लेते थे । उनकी हाजिरजवाबी तो लाजवाब थी ही, प्रखर प्रतिभा के साथ प्रत्युत्पन्न बुद्धिसम्पन्न व्यक्ति थे ।
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